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प्रिया-प्रकाश


लना। पुहुमि पृथ्वी। सुत-ईश- ईशसुत कार्तिकेय सूरसेनप। जलालदी जलालुद्दीन अकबर शाह । बानो बिरुद, धीरता को प्रशंसा । (नोट)- कुंचर रतन सेन ने १६ वर्ष की अवस्था में एक बार अकबर की फ़ौज को पराजित किया था। केशव दास जी ने इन्हीं की वीरता के वर्णन में 'रतनबावनी' नाम का ग्रंथ लिखा था जिसमें ५२ कवित्त हैं, पर यह ग्रंथ श्रधाष्य है। मूल घर बाहर जहई तहीं, केशव देश विदेश । सब कोऊ यहई है, जीत्यो राम नरेश ॥ ३१ ॥ रामसाह सो सूरता, धर्म न यूजै आन । जाहि सराहत सर्वदा, अकबर सो सुलतान ॥ ३२ ।। कर जारे ठाढ़े जहां, आठौ दिशि के ईश। ताहि तहां बैठक दई, अकबर से अवनीश ॥ ३३ ॥ जाके दर्शन को गये, उघरे देव किवार । उपजी दीपति दीप की, देखत एकहि बार ॥ ३४ ॥ भावार्थ-कहा जाता है कि रामसाह जी बद्रीनाथ जी के दर्शन को गये थे। तब इनके लिये मंदिर का द्वार स्वयं खुल गयाधा और दीपक भी स्वयं जल उठा था। मूलता राजा को राज अब, राजत जगती माहूँ । सजा राना राव सब, साबत जाकी छाह ॥ ३५ ॥ तिनके सुत ग्यारह भये, जेठे साह संग्राम । दच्छिन दृच्छिन राजमों, जिन जात्यो संम्राम ।। ३६ ॥ भरतखंडभूषण भने, तिनके भारतिसाहि ।