पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२३०

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२२२ प्रिया-प्रकाश देव चरित्र विचित्र चित्र चित्रित झांगन घर । जगत जगत जगदीश जोति, जगमगत नारि नर ।। दिन दान न्हान गुनगान हरि जनम सुफल करि लीजिये। कहि केशवदास बिदेशमति कंत न कातिक कीजिये ॥३१॥ शब्दार्थ-दंपति = ( जाया + पति ) 2ी और पनि। देव चरित्र = देवनानी के चरित्रों के चित्रों से घरों के आंगन चित्रित होते हैं ( दिवारी, गोवर्धन पूजा, यम द्वितिया तथा उद्बोधिनी एकादशी को दिनों में विविध चरित्रमय चित्र बनते हैं ) । जगत जगत जगदीश जोति - अगदीश की ज्योति से सारा संसार जग उठता है (विष्णु जी अग उठते हैं, और जग जन भी बर्श कालीन प्रालस्य से छु.ी पाकर जनन्य हो जाते हैं)। न्हान = (स्लान ) कार्तिक स्नान । गुन गान - बालों का विषारी गान । भावार्थ-सरल और स्पष्ट है। (गसिर वर्णन ) मूल-मासन में हरि श्रेश कहत यासों सब कोऊ । स्वारथ परमारथ हु देत भारथ महँ दोऊ ॥ केशन सरिता सरनि कूल फूले सुगंध गुर । कूजन कल कलहंस, कलित कलहंसनि को सुर ॥ दिन परम नरम शात न गरम करमहरम यह पाय ऋतु । करि प्राननाथ परदेस कहँ माग्गमिर मारग न चितुः॥३२॥ शदार्थहरि अंश = ईश्वर का अंश (मासानां मार्गशीर्थोऽ- हम्पीता) गुर (फा० शुल) फूल । जत...