पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२४०

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२३२ प्रिया-प्रकाश मूल-पंचमूत, पातक, प्रगट पंच यज्ञ, जिय जानि । पंच गव्य माता, पिता. पंचामृतनि बखानि ॥ १४ ॥ शब्दार्थ-पंचभूत = पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश । पंच पातक ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण चोरी, गुरु शय्या- गमन और इनका संग। पंच यक्ष ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, भूतथा और नृयक्ष (अतिथि सत्कार)। पंच गव्य - दूध, दही, घी, गोबर और मूत्र । पंच माता = निज जननी, श्राचार्यपत्नी, राजपत्नी, सास, मित्र पत्नी। पंच पिताजनक, उपनेता, ससुर, अन्नदाता और भयत्राता। पंच अमृत- दूध, दही, घी, मधु, मिश्री। (षट सूचक) मूल-कुलिश कोण षट, तर्क पट, दर्शन, ऋतु, रस, अंग । चक्रवर्ति, शिवपुत्र मुख, सुनि षटराग प्रसंग ॥ १५ ॥ शब्दार्थ-कुलिश कोण = यत्र के छः कोण माने जाते हैं।- षटतर्क = बेदान्त, सांख्य, पातंजलि, न्याय,मीमांसा, वैशेषिक। पट दर्शन = वैष्णव, ब्राह्मण, योगी, सन्यासी, जंगम और सेवरा। षट रस = सट्टा, मीठा, नमकीन, कटु, अम्ल, कसैला। पद ऋतु = बसंत, ग्रीप्म, बर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर । षट अंग--(बेद के ) शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छंद, ज्योतिष, निरुक्ति। षट चक्रवर्ती - येणु, बलि, धंधुमार, अजपाल, प्रवर्तक, और मानधाता।