पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२६

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पहला प्रभाव


कीर्तन (३) स्मरण (४) चरण सेवन (५) अर्चन (६) बंदन (७) दास्य (८) सख्य और (६) श्रात्म निवेदन । भावार्थ-नवरंगराय पातुरी नित्य नवीन प्रेम नवधा भक्ति सहित ऐसी शोभती है कि उसे देखकर नरपत्नियां तथा किन्नर पत्नियां और असुर पत्नियां माथा नवालेती हैं अर्थात् लज्जित होती हैं। हाव भाव संभावना, दोला सम सुखदाय । पियमन देति मुलाय गति, नवरंग नवगैंगराय ॥ ४८ ॥ शब्दाय हावसंयोग समय में नेत्र, कर, कटाक्ष द्वारा की हुई कृत्रिम चेष्ठायें । भाव-प्रेम, हास्य, रिस,खुशी इत्यादि मनोबेग । संभावना=कृत्य, क्रिया । दोला नृत्य का ढंग । नपरंग = नवीन ढंग का । भावाय-नवरंगयराय पातुरी नृत्य कला में ऐसी चतुरा है कि हाचों तथा भावों की कृत्रिम चेष्टाओं को करके अपने प्रियतम ( इन्द्रजीत ) के मन को आन्दोलित कर देती है अतः वह भूला के समान सुखदायक है । रिस, तर्जना, वा भर्सना के हाव प्रगट करके प्रियतम के मन को दूर हटाती है, फिर तुरंत ही प्रेम प्रीति और विश्वास के भावों को प्रगट करके पुनः उसके मन को अपनी ओर आकर्षित करती है यही काम झूला। गति- झूला का है। मूल-भैरव युत मारी सँयुत, सुरतरंगिनी लेखि । चंद्रकला सी मजै, नयनविचित्रा देखि ॥ ४६॥ शब्दार्थ-भैरव=(१) राग विशेष जो प्रातःकाल गाया