पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२६१

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प्रिया-प्रकाश कार्तिकेय ) । संगीत मीत-संगीत के प्राचार्य है। सुखद शक्ति लोकोपकारिणी शक्ति पार्वती जी। समर सनेही काम के बड़े भारी मित्र (कि पहले जलाकर पुनः ऐसा बर- दान दिया कि "विन वपु व्या सकल जग"। पहले काम को शरीर धारण करके कष्ट उठाना पड़ता था, वह कष्ट मिटा दिया)। बहु बदन पंचमुख हैं। यश केशोदास गानिये - केशव का यश दास भाव से शान किया करते हैं। द्विजराज पद- चन्द्रमा की दो कला (द्वितीया का चन्द्रमा)। (नोट) 'पद' शब्द 'दो' का बाचक R-देखो गणना अलंकार में दो सूचक शब्द । कमलासन पद्मासन लगाकर बैठते हैं। परदार प्रिय = सर्वोत्कृष्ट स्त्री अर्धात् विष्णु प्रिया लक्ष्मी के प्रियपात्र हैं (जब शिव जी किसी को संपत्ति प्रदान करने हैं, तब लक्ष्मी जी शिव के वचनानुसार उसके यहां निवास करती हैं)। मानिये बड़े मानी हैं---अकिंचन होने पर भी किसी से कुछ मांगते नहीं। भावार्थ-शिव जी कैसे हैं कि बड़े प्रभावान हैं, परमहंस वृत्ति से रहते हैं, तो भी निज पुत्रों के गुण सुनकर सुखी होते हैं, संगीत के मित्र हैं, देवता उनकी प्रशंसा करते है। संसार को सुख देने वाली परोपकारिणी ( पार्वती को अन्नपूर्णा रूप से) शक्ति को साथ रखते हैं ( अद्धीगिनी बनाये हुए हैं) कामदेव के बड़े सनेही हैं (कि शीर धारण के कष्टों को मिटाकर जगत व्यापी बना दिया ), पंचमुख हैं, नारायण का यश दास भाव से गाया करते हैं । द्वितीया का चन्द्रमा भूषण- क्त सिरपर शोभा देता है, पद्मासन लगाकर बैठते हैं, यह बात जाहिर ही है कि वे लक्ष्मी जी के प्रियपात्र हैं (तब