पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२८०

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ग्यारहवाँ प्रभाव कुंभ करन्न मन्यौ मघवा रिषु तहु कम न डरौं यम सौं लौं । श्री रघुनाथ के गातन सुंदरि जानहि तूं कुशलात न तो लौं । शाल सबै दिगपालन को कर रावण के करवाल है जो लौं ॥ ५२ ।। शब्दार्थबपुरा = बेचारा । मधवारिषु= मेघनाद । न डरौं जमा सौ लौं-मैं शत यमराज से भी नही डरता। सुंदरि(संबो. धन है, मंदोदरी के लिये ) करवाल - तलवार । भावार्थ-रावण मंदोदरी कहता है, हे सुंदरी ! क्या हुआ जो बिभीषण शत्रु से जा मिला, कुमकर्ण और मेघनाद मारे गये, मैं एक तो क्या सौ यमराजों से नहीं डरता। जब तक दिगपालों को शालने वाली मेरी तलवार मेरे पास है तब तक तू राम की कुशल मत समझ। ( ब्याख्या)-सहाय हीन होने पर भी रावण अपने अहंकार स्माभिमान को नहीं छोड़ता। ऐसे ही वर्णन में ऊआलंकार माना जायगा। १७---( रसवत अलंकार) मूल-रसमय होय सु जानिये, रसवत केशवदास । नव रस को संक्षेपही, समुझौ करत प्रकाश ॥५३॥ (ब्याख्या)-जहां कोई रस किसी अन्य रस भाव का अंग होकर उसे पोषण करे, उसकी शोभा बढ़ावे यहां उस पोषण कारी रस के वर्णन को (गुणीभूत वा अप्रधान व्यंग