पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८२ प्रिया-प्रकाश ने सबका बल नष्ट कर दिया था, तब कृष्ण ने उत्तरा के गर्म में प्रवेश करके चक्र द्वारा परीक्षित की रक्षा की थी। केशव कहता है कि यदि राम जी अनाथों के नाथ ( रक्षक) नहीं है, तो क्या हाथी (गजेन्द्र) अपने हाथ से हथियार करके ग्राह से छूटा था। ( व्याख्या )-ऊपर लिखी घटनाओं से सुननेवाले के चित्त में विस्मय पैदा है कि ये सब बातें कैसे हुई, बड़े श्राश्चर्य की वाते हैं, अतः अद्भुत रस है। (पुनः) मुल-केशोदास बेद विधि व्यर्थही बनाई विधि, ब्याध शवरी को कौने संहिता पढ़ाई ही । वेषधारी हरि बेष देख्यो है अशेष जग तारका को कोने सीख तारक सिखाई ही ॥ वारानसी बारन कन्यो हो बसोवास कव, गनिका कवहिं मनिकनिका अन्हाई ही । पतितन पावन करत जो न नंदपूत, पूतना कवहिं पति देवता कहाई ही ॥ ६॥ शब्दार्थ -~-व्याध = बाल्मीक । संहिता-वेद । ही थी। चेष- धारी हरि = एक राजकुमार ने झूठ मूठ अपने को कृष्णरूप बनाकर एक राजकुमारी से ब्याह किया था। परीक्षा होने पर कृष्ण ने केवल निज भेष धारी की जा रखने के लिये उसको चतुर्भुज कर दिया था। भक्तमाल मै कथा प्रसिद्ध है। तारक सीख - तारक मंत्र का उपदेस । वारानसी = काशी ।