पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२९०

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ग्यारहवाँ प्रभाव हारन = हाथी, गजेन्द्र । करयो हो- किया था। बसोबास निवास । मनिकनिका - काशी का प्रतिद्ध मणिकर्णिका कुंड वा घाट । नंदधूत = कृष्ण । पतिदेवता - पतिव्रता, सती। भावार्थ ब्रह्मा ने बेद की पद्धति व्यर्थ ही बनाई है। यदि बेद पद्धति ही से मुक्ति मिलना निश्चित है, तो बाल्मीकि और शवरी को किसने वेद पद्धति पाई थी। पधारी की भी जैसी ला रखी उसे सारे संसार ने देखा था। ताड़का को किसने तारकमंत्र की दीक्षा दी थी। गजेन्द्र ने कब काशी वास किया था, गणिका ने कव मणिकर्णिका में स्नान किये थे । यदि कृष्ण पतितपावन न होते तो पूतना को मुक्ति कैसे मिलती क्योंकि वह कब पतिव्रता नाम से प्रसिद्ध थी। ( व्याख्या )-पहले छंद की तरह इस छंद में वर्णित घटनाएं भी सुननेवाले के चित्त मे प्राध्य पैदा करती हैं कि सा के रचे विधान ही व्यर्थ हैं या ये घटनाएं झूठी हैं । यदि विधान सत्य है तो ये घटनाएं कैसे हुई। अतः अद्भुत रस । (हास्य रसवत मूल -बैठति है तिनमें हठि के जिनकी तुमसो मति प्रेम पगी है । जानति हौ नलराज दमैती की दूत का रस रंग रंगी है। पूजेगी साब सबै मन की तन भाग की केशव जोति जगी है। भेद की बात सुने ते कछु वह मासक ते मुसकान लगी है।।६३॥ शब्दार्थ-जिनकी 'पगी है - जो तुम्हारे प्रेमी हैं। नलराज रंगी है = राजा नल और दमयंती को दूत कथा (विवाह से पहले की हंस द्वारा दूतत्व की कथा ) बड़े प्रेम से कहा सुना करती है । तनभाग=शरीर के सब अवयव । भेद की बात% कोई रसमय वार्ता। भानक ते = लाभग धक महीने से।