पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३०१

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२६५ ग्यारहवां प्रभाव ( नोट )-इसमें केशव ने श्लेव से बड़ा उत्सम काम लिया है । दो कचित्तों का मजमून एक ही छंद से अदा किया है। इसी से इसका 'युक्तिव्यतिरेक' नाम है। ऐसी योग्यता का छंद हमने किसी दूसरे कविका नहीं देखा । २-(सहज व्यतिरेक) मूल-गाय बराबरि धाम सबै धन जाति बराबर ही चलि आई। केशव कंस दिवान पितान बराबर ही पहिरावनि पाई। बैस दरावरि दीपति देह बराबर ही बिधि बुद्धि बड़ाई । ये अलि आजु ही होहुगी कैसे बड़ी तुम आँखिन ही कीबड़ाई भावार्थ-दोनों के यहां गायें बराबर हैं, घर, धन और जाति सदा से समान ही रहे, कंस के दरबार से तुम दोनों के पिताओं को बराबरी का सिरोपान (खिलअत ) मिला है। बैस भी बराबरी की है, अंगदुति भी बराबर है, विधि ( कर्म कांड, संस्कारादि) बुद्धि और प्रतिष्ठा भी दोनो कुलों की समान ही है, फिर अाज तुम केवल बड़ी आंखों वाली होने से कैसे उनसे ( नायक से ) बड़ी हो जाओगी? (व्याख्या )-और सब बातों में बराबरी है, केवल नायिका की आंखें नायक की आखों की अपेक्षा कुछ बड़ी है, यही भेद है। २०-(अपहृति अलंकार) मूल-मन की बात दुराय मुख, औरै कहिये बात । कहत अपहनुति सकल कबि, ताहि बुद्धि अधदात ॥८॥