पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३०५

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ग्यारहवाँ प्रभाव की प्रशंसा किली अंतरंग सखा से कर रहे थे, राधिका ने सब बातें सुननी । यूछा कि किस गोपकुमारी का रूपवर्णन हो रहा है । तब कृष्ण ने बात छिश कर कहा कि मैं तो एक बड़े मोलवाली घोड़ी की बात कह रहा हूं। शब्दा-(गोपकुमारी पक्ष)-सटकारे = लंचे। लोनी- सुन्दर । होनी बैस होनहार । सलोनी - अधिक अच्छी । सुख मुख = सुखद मुख वाली! पाइये जो बाग गहि-जो कभी बाग में पकड़ पाऊं। साध= इच्छा । (घोड़ी पक्ष)- केश= केशार ( गर्दन पर के बाल ) अयाल के बाल । सोने तें सलोनी दुति चंपई रंग की । सुख मुख = मुंह की मुला यम अर्थात् मुंहजोर नहीं है । कविता = ( कबिका) लगाम की श्रावाज़ ( बहधा घोड़े लगाम चबाया करते हैं, उससे कुछ शब्द होता है, उसो शब्द के अर्थ में केशव ने इस शब्द का प्रयोग किया है क्योंकि संस्थत में कव' का अर्थ है दांत चाकर शब्द करना-"कवते, दन्तेन शब्दायने"। पाइये जो बाग गहि-जो उसकी बाग पकड़ पाऊँ । साँसनि उसासै-एक सांस में, एक दम भर में। रति रन की रण की प्रीति ! बड़वा-शोड़ी। पन =मोल । भावार्थ-सरलता से लग सकता है। (ग्यारहवां प्रभाव समाप्त)