पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बारहवाँ प्रभाव २१---( उक्ति अलंकार) मूल--बुद्धि बिबेक अनेक बिधि, उपजत तर्क अपार । तासों कवि कुल उक्ति कहि, वर्गत विविध प्रकार ॥२॥ (भेद) मूल वक्र, अन्य, व्यधिकरण कहि, और विशेष समान । सहित सहोकति मैं कही, उक्ति सुपंच प्रमान ॥२॥ भावार्थ-केशव ने पांच प्रकार की उक्तियां बताई हैं। १-(बक्रोक्ति) मूल-केशव सूधी बात में, बरणत टेढो भाव । वक्रोकति तासें कहै, सही सबै कबिराव ॥३॥ भावार्थ-शद सीधे सादे हो, पर तात्पर्य में गूढ व्यंग हो, सो वक्रोक्ति। (यथा) मूल- ज्यौ ज्यौं हुलास सों केशवदास विलास निवास हिये अवरेख्यो। त्यौ त्यौं बढ़ो उर कंप कळू भ्रम भीत भयो किंधौं सीत विशेष्यो। मुद्रित होत सखी बर ही मम नैन सरोजनि सांच के लेख्यौ । तें जु कयौ मुख मोहन को अरावंद सोहै सो तो चंद सो देख्यौ ॥४॥