पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३२२

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प्रिया-प्रकामा देवगण । बरद-चर देने वाला । बिनोद भावै लीला करना अच्छा लगता है। अनाथ-जिसका नाथ कोई न हो--- जो सर्वश्रेष्ठ हो । केशवक्षीरसाई भगवान । पुरुष न नारिये कृष्णा न पुरुष हैं न स्त्री अर्थात् ईश्वर हैं ! भावार्थ-(स्तुतिपक्ष )-कृष्ण साक्षात ईश्वर हैं, इनकी माया को कोई समझ नहीं सकता, वह सबको द्विविधा में डाल कर नचाया करती है, और ये कृष्ण एक हाथ से पुन्य कमों और दूसरे हाथ से पाप कर्मों को मिटाने का विचार रखते हैं अर्थात् दासों के कर्म नाश करके मोक्ष देते हैं। लक्ष्मी पति हैं, गजेन्द्र के रक्षक हैं, चंद्रमा सा मुंह है, सब जीवों के शरीरों के कर्ता हैं। आजतक ब्रह्मादि देवों की रक्षा करते आये हैं, बरदाता हैं, अनेक लीलाएं इन्हें भाती हैं, तथापि सर्व श्रेष्ठ हैं, क्षीरशाई भगवान हैं। अतः राजाओं को छोड़ कर (क्योंकि राजा तो मनुष्य ही हैं ) भीष्म ने जो इन्हें सर्व श्रेष्ठता का तिलक दिलाने को कहा है, इसके हेत मैं उनकी कहां तक प्रशंसा करू क्योंकि ये कृष्ण न पुरुष हैं न स्त्री । ( अर्थात् साक्षात् ईश्वर हैं---ईश्वर तत्व लिंग भेद से परे माना जाता है)। २४-(अमितालंकार) मूल-जहां साधनै भोगई, साधक की शुभ सिद्धि। अमित नाम तासों कहत, जाकी अमित प्रसिद्धि ॥२६॥ भावार्थ-जिससे कार्य की सिद्धि हो वह साधन, जो व्यकि साधन करै वह साधक ! इस अलंकार में साधक को छोड़ साधन ही को कार्य सिद्धि का श्रेय प्राप्त होना कहा जाता है। कर्ता को जो श्रेय मिलना चाहिये वह कारण को मिलता है।