पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३२३

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बारहवी प्रभाव (यथा) मूल-भानन सीकर सीक हिये कत ? तो हित ते अति आतुर आई। फीको मयो सुख ही मुख राग क्यों ? तेरे पिया बहु बार बकाई।। प्रीतम को पट क्यों पलव्यों ? अलि केवल तेरी प्रतीत को लाई। केशव नीकेहि नायक सो रमि, नायिका बातन ही बहराई ॥२७॥ (नोट)-किसी नायिका ने सखी को नायक को लिवालाने को भेजा । नायक ने उसी से रति की और लौटा दिया। रति चिन्ह देखकर नायिका पूंछती है। भावार्थ-मुख पर पसीना और हृदय में लंबी सासें क्यों हैं ? (सखी जवाब देती है ) तेरे वास्ते दौड़ती गई और दौड़ती आई हूं। तेरा मुखराग आसानी से क्यों छूट गया है ? (जवाब ) तेरे नायक ने बहुत बकवाद कराया। प्रियतम का वस्त्र क्यों बदल लाई है ? (उत्तर) तेरे विश्वास के लिये । नायक से स्वयं रमण करके, इस प्रकार नायिका को बातों में बहला दिया। (नोट)-नायक के साथ रमण की सिद्धि जो नायिका को प्राप्त होनी चाहिये थी वह सखी को प्राप्त हुई। नायिका साधक है, सखी साधन थी। {पुनः) मूल-कोगनै कर्ण जगन्माण से नृप साथ सबै दल राजन ही को। जाने को खान किते सुलतान सु आयो शहाबुदीं शाह दिली को। ओरछे पानि जुन्यौ कहि केशव शाह मधूकर सो शक जी को। दौरि के दूलहराम मुजाति को अपने सिर कीरति टीको॥२८॥