पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३३

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दूसरा प्रभाव


(कविवंश वर्णन ) (अर्थ सरल है, अतःटीका लिखना आवश्यक नहीं समझा गया) मूल -ब्रह्माजूके चित्तते प्रगट भये सनकादि । उपजे तिनके चित्त ते सब सनौढ़िया आदि ॥१॥ परशुराम भृगुनद तब उत्तम बिन बिचारि । दये बहत्तर प्राम तिन तिनके पायँ पखारि ॥२॥ जग पावन बैकुंठपति रामचंद्र यह नाम । मथुरा मंडल में दये तिन्हैं सात सौ ग्राम ॥ ३ ॥ सामयश यदुकुल कलस त्रिभुवन पाल नरेश । फेरि दये कलिकाल पुर तेई तिन्हैं सुदेश ॥ ४॥ कुंभवार उद्देसकुल प्रगटे तिनके बंस । तिनके देवानंद सुत उपजे कुल अवतंस ॥ ५ ॥ तिनके सुत जयदेव जग थापे पृथिवीराज । तिनके दिनकर सुकुलसुत प्रगटे पंडितराज ॥६॥ दिल्लीपति अल्लाउदी कीन्हीं कृपा अपार । तीरथ गया समेत जिन अकर करे बहुबार ॥७॥ गया गदाधर सुत भये तिनके अानंदकंद । जयानन्द तिनके भये विद्यायुत जगबंद ॥८॥