पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३५३

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३४८ प्रिया-प्रकाश ( व्याख्या)-अभी मायिका अप्रौढ़ है तब तो यह दशा है, जब पूर्ण अयस्का होगी तब क्या दशा होगी। उसकी कांति सुधास, सौदर्य और सुकुमारता की उपमा ही न मिलेगी अतः अभूतापमा हो जायगी । ( नोट मेरी सम्मति से इसको अर्वाचीन मत से "बाचक वर्मापमान लुतोपमा" कह सकते । -( अद्भुतोपमा) मूल-जैसी भई न होनि अब आगे लखै न कोय। केशव एसे वरनिये, अदभुत उपमा सोय । ११ । ( यथा) मूल प्रीतम को अपमान न माननि गान सयानन रीझि रिझावै । बंकावलोकनि बोल अमोलनि बोलि के केशव मोद बढ़ावै 1 हाव हूँ भाव प्रभाव सुभावनि प्रेम प्रयोगनि चित्त चोरावै। ऐसे विज्ञास जुहोहिं मगंज में तो उपमा मुल तरे की पावै ।१२ माया-मान करके कभी प्रियतम का अपमान न करे, सज्ञानता से गान करके स्वयं रीमें और अपने प्रियतम को रिझा, तिरछी नितवन से और अमूल्य वचन बोल कर प्रियतम का आनन्द बढ़ावै, अपने स्वाभाविक हाव भाव के प्रभाव से प्रेम पैदा करके चित्त को हरण करे, कमल में जब ऐसे गुण हो, तब तेरे मुख की समता पावै। (नोट-कमल म ऐस गुण होना त्रिकाल में संभव नहीं, और यदि हो तो अद्भुत बात होगी, अतः अद्भुतोपमा है। हेनूपया और इस में समता सी भासित होती है, पर विचार करने से भेद यह जान पड़ता है कि हेतूपमा की