पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चौदहवां प्रभाव शब्दार्थ -सभाग-बड़े माग्यमान । षोड़श वरष मय सोलह वर्ष की ( चंपा भी सोलह वर्ष की हो जाने पर अति सुगंधित पुष्पादेती है ) । महरु न लाइये देर मत कीजिये। आतुर अति शीघ्र। (नोट)-भावार्थ सरल ही है। केवल इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि इस छंद में वाला उपमेय और चंपे की माता उपमान है। विशेषण शब्द जितने हैं सब का एक ही अर्थ दोनों पर लगेगा। १४-(धोपमा) मूल-एक धर्म को एक अंगु, जहां जानियतु होय । लाही सों धर्मोपमा, कहत सयाने लोय ॥ ३१ ॥ शब्दार्थ-'धर्म' शब्द का अर्थ यहां पर केवल 'वस्तु' है । अतः इस परिभाषा का अर्थ यह हुआ कि जहां किसी वस्तु (रूप, रस, गंध, गुण, द्रव्यादि) का केवल एक अंग जाना जाता हो वहां धर्मोपमा जानो। (यथा) मूल-ऊजरे उदार उर बासुकी विराजमान, हार के समान आन उपमा न टोहिये । शोभिमैं जटान बीच गंगा जू के जल बिंदु, कुंछ कलिका से केशोदास मन मोहिये । नख की सी रेखा चंद, चंदन सी चारु रज, अंजन सिंगार हू गरल रुचि रोहिये।