पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३६८

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चौदहवां प्रभाव भावार्थ-श्रीरामजी के राज्यसमय अन्य शत्रु राजाओं में पृथ्वीमंडल का राज्य छोड़कर कमंडल धारण किया है(संन्यासी होगये हैं) उनकी देह भस्म से विभूषित है, दिगंवर हैं, नवीन वस्त्र अंग पर नहीं है,सुन्दर स्त्रियों को छोड़कर भागकर पहाड़ों की कंदराओं में जा घुसे हैं, उनके भुजदण्ड सन्यासदण्ड से मंडित है ( सन्यासियों की लकीलिये हैं) और तलवार तथा राजदंड (असा) से रहित है-(जो पहले राजा थे वे अब दंडी भिक्षुक होगये हैं) (नोट)-इसमें उपमालंकार जान नहीं पड़ता, पर विचार से अह भासित होता है कि राजागण भिक्षुवत् हो गये हैं। समझ में नहीं आता कि केशव ने कैसे इसे उपमा के अन्तर्गत माना है। १६-( निर्णयोपमा) झूल-उपमा अरु उपमेय को, जहँ गुण दोष विचार । निर्णय उपमा होति तह, सब उपमम को सार ॥ ३५ ॥ (नोट)-इसमें उपमान के दोषों और उपमेय के गुणों का निर्णय करके समता करते हैं। दूषणोपमा और नियमोपमा की परिभाषाओं से इसको मिलाकर भेद अच्छी तरह समझ लेना चाहिये। दुषणोपमा में उपमान के दूपण दिखलाने का तात्पर्य होता है। नियमोपमा में अन्य उपमानों को दूषित ठहरा कर उपः मेय को एक उपमान के तुल्य निर्धारित करते हैं।