पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३६९

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चौदहवां प्रभाव ( यथा) मूल-बासों मृग अंक कहैं, तोसों मृगनैनी सबै, वह सुधाधर, तुहूं सुधाधर मानिये ! वह द्विजराज, तेरे द्विजराजी राजै, वह कलानिषि, तुहूं कलाकलित बखानिये । रत्नाकर के हैं दोऊ केशव प्रकाश कर, अंबर विलास, कुवलय हितु गानिये । बाके अति सीतकर, तुई सीता ! सीतकर, चंद्रमा सी चंद्रमुखी सब जग जानिये ॥३८ । (नोट)--अर्थ के लिये देखो 'केशवकौमुदी', प्रकाश ९ छंद नं०४०॥ ( ब्याख्या )जो जो गुण उपमान ( लक्षणा) अर्थात् चंद्रमा में हैं वे सब उपमेय ( लक्ष्य ) अर्थात् सीता में भी हैं, अतः उपा मेय किसी प्रकार उपमान से कम नहीं। १८-(असंभावितोपमा) मूल-जैसो भाव न संभवत, तैसो करत प्रकास । होत असंभावित तहां, उपमा केशवदास ॥ ३९ ॥ भावार्थ-किसी बात को असंभव प्रमाणित करने को अलग- वित उपमान देना। (यथा) मूल-जैसे अति शीतल सुबास मलयन माहि, अमल अनल बुद्धिदल पहिचानिये।