पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३७८

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३७४ प्रिया-प्रकाश शब्दार्थ-हयसार =(हयशाला) अस्तबल, पड़ा। बारन = द्वार । बारन-हाथी। भावार्थ-मुशोभित आंगन (स्त्री पुत्रादि से शोभित धर) घोड़ों की हींस से भरा अस्तबल, द्वार पर हाधी चिबाड़ने हुये, ऐसा सुख इस संसार में क्या बिना दिये (बिना पूर्व पुण्य के) मिल सकता है ? अर्थात् नहीं मिलता। नोट-इसमें तृतीय पद में बारन वारन अव्ययेव यमक है। (चतुर्थ पाद यमक) मूल-राधा ! केशव कुवँर की, बाधा हरहु प्रवीन । नेक सुनावहु करि कृपा, शोभन बीन नवीन । नोट- अर्थ स्पष्ट है । चौथे चरण में 'नवीन नदीन' यमक है। (द्विपाद यम) मूल-हरिके हरिके बल मनहिं, सुनि वृषभानु कुमारि । गावहु कोमल गीत दै, सुख करता करतारि ॥ ८॥ सावार्थ- हे वृषभानु कुमारी ! सुनो, कृष्ण के बल और मन को हरण करके, यहां तुम मुखदायक करताली बजा बजा कर मधुर गीत गा रही हो ? (और वे वहाँ व्याकुल पड़े हैं, ऐसा न चाहिये, चल कर उन्हें संभाली) नोट---इसमें श्रादि और अन्त चरण में अव्ययेत यमक है। (प्रथम और तीसरे में) मूल -अलिनी अलि नीरज बस. तरु प्रति युगल विहंग । त्यों मनमथ-मनमथन हार, बौं राधिका संग ॥8॥ भावार्थ-जैसे भौरी और भौंरा एकत्र होकर कमल में वसने हैं और पेड़ पर पक्षी का जोड़ा बसता है, उसी प्रकार काम के