पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३८

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तीसरा प्रभाव


मूल-सगुन पदारथ अर्थ युत, सुबरनमय सुभ साज । कंठमाल ज्यों कविप्रिया कंठ करो कविराज ॥ ३ ॥ शब्दार्थ-सगुन = (१) कविता के गुणों सहित (२) होरा सहित । पदारथ जवाहरात, मणिमाणिक । सुबरन%= (१) सोना (२) शुभवर्ण । शुभसाज-अच्छी तरह बनायी हुई । कंठमाल = कंठी । कंठ करो-( कंठ में पहन लो (२) (ज़बानी याद कर लो) भावार्थ -यह कबिप्रिया ग्रंथ कंठी के तुल्य है । हे कबिराज गण इसे कंठ में पहन लो (जवानी याद कर लो ) इसमें काव्यगुणही ओज माधुर्य और प्रसाद का डोरा है, काच्यार्थ ही मणिमाणिक हैं और शुभवर्ण ही सुवर्णमय गुरिया हैं और अच्छी तरह से सजाई गई है ( अच्छी तरतीब से सोने की गुरियाँ और जवाहरात इसमें गुहे गये हैं) -चरण धरत चिंता करत, नींद न भावत शोर । सुबरण को सोधत फिरत, कबि व्यभिचारी चोर ॥४॥ शब्दार्थ --चरण = (१) पाव (6) छंद का एक पद ! सुख- रण = (१) सुंदर वर्ण (२) सुन्दर रंगवाली नायिका (३) सोमा सोधत फिरत = खोजा करता है। नोट - इस दोहे का अर्थ तीन जनों ( कबि, व्यभिचारी और चोर ) के पक्ष में लगेगा। भावार्थ-१-( कवि पक्ष)-कबि छंद के एक एक चरण गढ़ते समय खूब चितवन करता है और नींद तथा शोर अच्छे