पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३८२

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प्रिया-प्रकाश (चतुष्पादयमक) मुल नहीं उरबसी उर बसी, मदन मदन बश भक। सुर तरुवर तरुवर त6, नंद नंद आसक्त । १७ ।। भावार्थ भक्तजन ऐसे होते हैं कि न तो उर्वशी उनके मन में यास करती है और न वे काम के नशे के बश होते हैं। जो नंद-नंदन पर आसक्त होते हैं (कृष्ण के अनन्य भक्त होते हैं।) ने कल्प वृक्ष को भी साधारण वृक्ष की तरह छोड़ते हैं ( उससे भी कुछ नहीं मांगते)। (सव्ययेत यमक) मूल-माधव सो धव राधिका, पावहु कान्ह कुमार । पूजहु माधव नियम सों, गिरिजा को भरतार ॥ १८ ॥ शब्दार्थ-माधव-विष्णु । धवपति । माधव -वैशाखमास। भावार्थ-हे राधिका । यदि चाहती हो कि विष्णु के समान (प्रतापी और सुन्दर) कृष्ण को पति रूप से पाओ, तो नियम से बैशाख मास में शिव का पूजन करो । (व्याख्या)-इसमे धव, धव, और माधव माधव शब्दों के कारण यमक है, पर ये शब्द सटे हुये नहीं हैं, बीच में और शब्द आ गये हैं, अतः सम्पयेत यमक है। ( अंतादि निरंतर सभ्ययेत) मूल-पाप भजत ज्यों कहत ही, रामचन्द्र अवनीप । नीप प्रफुल्लित लखत त्यों, बिरही प्रिया समीप ॥ १६ ॥ (नोट)-इसमें नीप, नीप के कारण यमक है, पर एक शब्द चरण के अंत में है और दूसरा दूसरे चरण के आदि में है।