पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४

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सरल है" लिख कर छोड़ दिया है। इसका प्रथम कारण तो यह है कि वे छंद हमें सरल अँचे हैं, और सरल छंदों की टीका लिखकर ग्रंथका विस्तार बढ़ाना हमें अभीष्ट न था। दूसरा का- रण यह है कि जो मनुष्य उन सरल छंदों का अर्थ स्वयं नहीं कर सकता वह इस ग्रंथ के पढ़ने का अधिकारी नहीं, उसे पहले अन्य सरल अंथ पढ़ने चाहिये, जब कुछ योग्यता हो जाय तब इसे पढ़े। लोग पूछ बैठते हैं कि केशव ने यह ग्रंथ किस अंथ के प्रा. धार पर लिखा है । इसकी छानबीन करते समय हमें यह पता चला है कि इसके प्रथम प्राउ प्रभाष तो केशव ने निज कल्पना से लिखे हैं अथवा ऐसे ग्रंथ के अाधार पर रचे हैं जिसका संस्कृत साहित्य में अब अभाव सा है। नवं प्रभाव से पंद्रह प्रभाव तक की रचना में केशव ने अधिकतर दंडीकृत काव्या. दर्श से, तथा जहां तहां राजानक रुय्यक कृत अलंकार सूत्र से सहायता ली है। आक्षेप, उपमा और यमक का वर्णन तो ज्यो का त्यों दंडी का ही लिया है। सोलहवाँ प्रभाव लिखने में कुछ तो निज कल्पना से, कुछ विविधि ग्रंथों से मसाला लिया है। केशव ने, इस ग्रंथ में, निज शाश्रयदाता राजा इन्द्रजीत, राजारामसिंह तथा उनकी दरबारी बेश्याओं प्रवीणराय, तान- तरंगा इत्यादि को छोड़, नीचे लिखे लोगों के नाम भी अपनी कविता द्वारा-अमर कर दिये हैं। १-पतिराम सोनार ( देखो प्रभाव ९ छंड नं० २९, प्रमान १२ 'छंद ०१३, १९) राना अमर सिंह (देखो प्रभाव ११ छंद ३०, ३१, ३२, ३३ )