पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४०२

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प्रिया-प्रकाश वडे मोले भाले हैं, हे कृष्ण! तुमने माखन चोराना, झूठ बोलना और हठ करता किसको कुसंगति से सीखा है। नोट-इसमें कवर्ग के ३ क, ख, ग, चवर्ग के २ च, झ, दवर्ग २४, ढ, तवर्ग के ५ स, थ, द, ध, न, पवर्ग के ४ प, फ, भ, म और य, र, ल, व, श, स, ह, सब मिला कर २३ अक्षरों का प्रयोग है। (बाईस वर्ण का) मूल -हीर दिढ़ बल गोविंद विभु मायक सीलानाथ । लोकप बिट्ठल शंखधर गरुडधुज रधुनाथ ॥ १६ ॥ शब्दार्थ-दिदवल = अति बली । मायक = मायापति । विट्ठल = केशव के मंत्र गुरु श्री विठ्ठलनाथ गोस्वामी (ब्रजबाले )। केशव ने अपने गुरु को ईश्वर मान कर यहाँ उनका स्मरण किया है। ये बल्लभाचार्य के पुत्र और अष्ट छाप कवियों के आश्रय दाता थे। भावा-मेरे मंत्र गुरु श्री १०८ गोस्वामी विट्ठलनाथ जी साक्षात् ईश्वर हैं और हरि गोविंदादि सब उन्हीं के भिन्न भिन्न नाम हैं। नोट-इसमें कवर्ग के ४ क, ख, ग, घ, चवर्ग का १ ज, स्वर्ग के ३१, ड, ढ, तवर्ग के ५ त, थ, द, ध, न, पवर्ग केप, ब, भ, म, और य, र, ल, व, स, ह, सब मिल कर केवल २२ अक्षर प्रयुक्त हैं 1 (विशेष) शिष्य ने अपने गुरु का नाम कैसी खूबी से बतलाकर अमर किया है। (इक्कीस वर्ष का) -जैसे तुम सब जग रचे दिये काल के हाथ । तैसे अध दुख कादि बलि करमफंद डिद नाथ ॥ २०॥ मल-