पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४०९

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४०६ प्रिया-प्रकाश भावार्थ-(सखी बचन सखी प्रति)सखी! राधिका को श्रीकृष्ण बन में मिले ( भंट हुई ) जिनके गले में सुन्दर कमलों की बनमाला फबती थी। परंतु राधिका नेत्रों से मिली और मनही मन मिली किंतु बचनों से न मिली ( कुछ बोली नहीं) (नोट)-इसमें केवल ४ अक्षर ब, च, म, ल, का प्रयोग है। ( तीन वर्ण पाला) भूल-लगालगी लोपौं गली, लगे लागु लौ लाल । गैल गोप गोपी लगे. पा लागौं गोपाल ॥ ३८ ॥ शब्दार्थ-गली = कुल मर्यादा। लागु = निकट होना, नजदीकी। = प्रबल इच्छा । लाल = कृष्ण ! लगे लागु- निकट निकट चलने लगे। भावार्थ-लगा लगी करके ( प्रेमवार्ता करके ) इसकी कुल मर्यादा लोप कर , ( कुलवती होने की लजा छोड़ा हूँ ) इस प्रबल इच्छा से कृष्ण जी उसके निकट निकट होकर चलने लगे। तब उसने कहा कि हे गोपाल ! मै पैरों पड़ती हैं, मुझे मत छेड़ो देखो यहां गैल में बहुत से गोप गोपी हैं (यहां वार्ता करना उचित नहीं) (नोट)-इसमें केवल तीन अक्षरी ग, प, ल, का प्रयोग है। (सूचना)-इस दोहे के कई एक पाठान्तर भी मिलते हैं। पाठान्तरों के अनुसार अर्थान्तर भी हो सकते हैं। हमें जो अच्छा ऊँचा सो लिखा है। तात्पर्य तो केवल इतना है कि दोहे भर में केवल तीन ही अक्षरों का प्रयोग हो । (दो वर्ण वाला) मूल-हरि हीरा राहै हरो हेरि रही ही हारि । रहि रहि हौं हाहा र हरे हरे हरि रारि ॥३॥