मूल-
-~-वर्ण प्रयोग न कर्णकटु सुनहु सकल कविराज ।
सबै अर्थ पुनरुक्ति के छाँहु सिगरे साज ॥१६॥
भावार्थ---कर्णकटु और ८-पुनरुक्ति दोष भी न पाने पावें।
मूल ---देश विरोध न बरनिये, काल विरोध निहारि ।
लोक न्याय आगमन के, तजौ विरोध विचारि ॥ १७ ॥
भावार्थ-२-देश विरोध। १० काल विरोध । ११ लोक विरोध
१२-न्याय विरोध और १३-आगम (शास्त्र) विरोध भी
विचार पूर्वक त्याज्य हैं।
(नोट) तेरह दोष ये हैं और पाँच ऊपर कह पाये, सब मिला-
कर १८ दोष हुए । इन्हें कविगण बचावें तो अच्छा है।
अब इन तेरह मे से एक एक का विवेचन अलग अलग करते हैं।
१-(गण गण वर्णन)
मूल-केशव गन शुभ सर्वदा, अगन अशुभ उर आनि ।
चारि चारि विधि चारु मति, गन अरु अगन बखानि ॥१८॥
शब्दार्थ-गन = सुगण । अगन - कुगण ।
भावार्थ-८-Tण हाते हैं, जिनमें चार शुभ और चार अशुभ हैं ।
मूल - मगन नगन पुनि भगन अरु, यगन सदा शुभ जानि ।
जगन रगन अरु सगन पुनि, तगनहिं अशुभ बखानि ॥१६
भावार्थ-मगण, नगण, भगण, यगण, ये चार शुभ गण कह-
लाते है । जगण, रगण, सगण, और तगण ये चार गण अशुभ
माने जाते हैं।
मूल -~~-मगन त्रिगुरु युत बिलधु मय, केशव नगन प्रमान ।
भगन आदि गुरू आदि लघु, यगन बखानि सुजान ॥२०॥
पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४६
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तीसरा प्रभाव