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तीसरा प्रभाव


मूल- -~-वर्ण प्रयोग न कर्णकटु सुनहु सकल कविराज । सबै अर्थ पुनरुक्ति के छाँहु सिगरे साज ॥१६॥ भावार्थ---कर्णकटु और ८-पुनरुक्ति दोष भी न पाने पावें। मूल ---देश विरोध न बरनिये, काल विरोध निहारि । लोक न्याय आगमन के, तजौ विरोध विचारि ॥ १७ ॥ भावार्थ-२-देश विरोध। १० काल विरोध । ११ लोक विरोध १२-न्याय विरोध और १३-आगम (शास्त्र) विरोध भी विचार पूर्वक त्याज्य हैं। (नोट) तेरह दोष ये हैं और पाँच ऊपर कह पाये, सब मिला- कर १८ दोष हुए । इन्हें कविगण बचावें तो अच्छा है। अब इन तेरह मे से एक एक का विवेचन अलग अलग करते हैं। १-(गण गण वर्णन) मूल-केशव गन शुभ सर्वदा, अगन अशुभ उर आनि । चारि चारि विधि चारु मति, गन अरु अगन बखानि ॥१८॥ शब्दार्थ-गन = सुगण । अगन - कुगण । भावार्थ-८-Tण हाते हैं, जिनमें चार शुभ और चार अशुभ हैं । मूल - मगन नगन पुनि भगन अरु, यगन सदा शुभ जानि । जगन रगन अरु सगन पुनि, तगनहिं अशुभ बखानि ॥१६ भावार्थ-मगण, नगण, भगण, यगण, ये चार शुभ गण कह- लाते है । जगण, रगण, सगण, और तगण ये चार गण अशुभ माने जाते हैं। मूल -~~-मगन त्रिगुरु युत बिलधु मय, केशव नगन प्रमान । भगन आदि गुरू आदि लघु, यगन बखानि सुजान ॥२०॥