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प्रिया-प्रकाश

प्रिया-प्रकाश ५-कहीं कहातुर दोहा दुई. उदाहरण, आठौ आठौ पाय । केशव गन अरु अंगनके समझौ बुद्धि सुभाय ॥३२॥ भावार्थ 4-ऊपर के दोनों दोहों मेंटचर हैं। पाठो चरण में गणागग के श्राउ उदाहरग हैं, उन्हें समझिये-जैसे:- १-राधारा धारमम+भ=मित्र + दास, फल विजय । २-मन पठयो हैन+य-मित्र + दास, फल विजय । ३-उद्धव ह्यांतुम = भ+मदास + दास, फल सर्वजीवश । ४-कहोयोग कीगा=य+यदास + दास, फल सर्वजीववश । ये चारो गणयोग शुभ हैं ज+म- उदासीन + दास, फल शल्प । ६-प्रागनाथकेमिर + य उदासीन+दास, फल अल्प । ७-फिर पीछे पछिस +भ शत्रु दास, फल नारिनाश। ८-ऊधो समुझौ चि-त + य =शत्रु + दास, फलनारिनाश । ये चारो गणयोग अशुभ हैं । इसी प्रकार और भी समझलो । नोट-चूंकि छठे और आटचे उदाहरण में 'मि' और 'चि' देखने में लघु हैं पर गण विचार से गुरु माने गये हैं। नवीन पाठक को यह शंका हो सकती है कि ऐसा क्यों हुभा। इसके समाधान के लिये केशव नियम बतलाते हैं कि- मूल-संयोगी को आदि युत, बिंदु जु दीरघ होय । साई गुरु लघु और सब कहै सयाने लोय ॥ ३३ ।। भावार्थ-संयुक्ताक्षर के पहले वाला अक्षर, और अनुस्वार तथा विसर्ग वाला, तथा जो स्वयं ही दीर्घ हो, ये अक्षर गुरु माने जायेंगे। जैसे-मित्त और चित्त शब्द में 'मि' और 'चि' गंगा शब्द कार्ग, दुःख का 'दुः' और गंगा का 'गा' भी, ये सब पिंगलानुसार गुरु माने जायेंगे।