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प्रिया-प्रकाश


लच्छी राम कबि ने कहा है:- कतहुँ सत्य को भूठ करि घरनत वारहिं बार । कतहुँ मूंट को कहत हैं, परम सत्य निरधार ।। १-(सत्य को झूठ कहना) मूल-केशवदास प्रकाश बहु. चंदन के फल फूल । कृष्ण पक्ष की जोन्ह ज्यों, शुक्ल पक्ष तम तूल ॥ ५॥ भावार्थ-केशव कहते हैं कि चंदन वृक्ष में प्रत्यक्ष बहुत से फल फूल होते हैं, पर कवि लोग चंदन वृक्ष में फूलों का न होना ही वर्णन करते हैं। इसी तरह कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष मैं तम और प्रकाश बराबर ही होता है, पर कवि लोग कृष्ण पक्ष की अपेक्षा शुक्ल पक्ष की अधिक प्रशंसा करते हैं। नोट-श्रीतुलसीक्षस जी ने कहा है:--- "सम प्रकाश तम पाख दुहुँ, नाम भेद विधि कीन्ह ।" २--(झूठ को सत्य मान कर वर्णन करना) मूल-जहँ जहँ वर्णत सिंधु सब, तहँ तहँ रतननि लेखि । सूछम सरवर हू कहैं, केशव हंस विशेषि ॥६॥ भावार्थ-प्रत्येक समूद्र में रत्न नहीं होने, पर कबि जहाँ समुद्र का वर्णन करेगा वहाँ उसमें रत्नों का होना वर्णन करेगा। हंस केवल मान सरोवर में रहते हैं, पर कवि छोटे सरोवर में भी हंसो और कमलों का होना वर्णन करेगा। यही झूट को सत्य कहना है। (पुनः) मूल -लेन कहैं भरि मूठि तम, सूजनि सियनि बनाय । अंजुलि भरि पीवन कहैं, चंद्र चंद्रिका पाय ॥ ७ ॥