भावार्थ-( रावण का दूत जो राम सेना देखने गुप्त रूप से
गया था, लौट कर रावण से कहता है कि वहाँ इतने अधिक
और ऐसे धीर बानर हैं कि) सूजी से अच्छी तरह सी कर
(गेंद सा बनाकर ) रात्रि के अंधकार का अपनी मुट्ठी में
कर लेने की बार्ता करते हैं और रात्रि की चाँदनी को
अंजुली में भर कर पी लेने की वार्ता करते हैं (ऐले साहसी
हैं ) अर्थात् रात्रि को मिटा देना चाहते हैं-व्यंग यह कि
न रात्रि रहेगी न निश्चर रहेंगे।
(विवेत्रन)-इससे राम सेना की प्रशंसा सूचित होती है। अर्थ
समझ कर चित्त प्रसन्न हो जाता है, पर बात सब झूठी है ।
न तो अंधकार सिया जा सकता है, न मुट्ठी में भरा जा
सकता है, न चाँदनी पी ली जा सकती है। यही झूट का
सत्यवत् वर्णन है।
मूल --सब के कहत उदाहरण, बाई ग्रंथ अपार ।
कछू कछू ताते कयौ, कवि कुल चतुर विचार ॥८॥
भावार्थ-केशव कहते हैं कि कौन कौन सी सत्य बातों को
झूठी और कौन कौन सी झूठी बातो को सत्य करके कवि
लोग वर्णन करते हैं, यदि इन सब बातों के उदाहरण मैं
लिखू तो ग्रन्थ बहुत बढ़ जाय । अतः कुछ थोडेही से मैंने
कहे हैं। चतुर कविगण स्वयं विचार कर लेंगे।
( पुनः तम के संबंध में झूठ का सत्य वर्णन )
मूल- कंटक न अटकै न फाटत चरण चपि,
बात ते न जात उड़ि अंग न उघारिये ।
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चौथा प्रभाव