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प्रिया-प्रकाश


(नोट)-ये ऊपर लिखी वस्तुए सफेद रंग की मानी गई हैं। अब आगे कविता द्वारा कुछ और सफेद वस्तुओं के नाम बताते हैं। मूल---कीन्हे छत्र छितिपति, केशोदास गणपति, दसन, बसन बसुमति कन्यौ चारु है। विधि कीन्हो आसन शरासन असमसर, आसन को कीन्हो पाकशासन तुषारु Il हरि करी सेज हरि प्रिया करो नाक मोती, हर कयौ तिलक हराहू कियो हारु है । राजा दशरथसुत सुनौ राजा रामचन्द्र, रावरो सुयश सब जग को सिगाँरु है ॥ १०॥ शब्दार्थ-वसुमती-पृथ्वी। असमसर काम पाकशासन = इन्द्र । तुषार-सफेद घोड़ा ( उच्चैःश्रवा)। हरिप्रिया = लक्ष्मी । हरा-पार्वती। भावार्थ- हे राम जी नाप की कीर्ति सारे संसार का सिंगार { भूषण ) हो रही है, क्योंकि राजाओं ने उसी से अपने अपने छत्र बनाये हैं, गणेश ने उसे ही अपना दांत बनाया है, पृथ्वी ने उसे अपना वस्त्र बनाया है (पृथ्वी 'सागरांबरा' कहलाती है ), ब्रह्मा ने उसे अपना श्रासन ( पुंडरीक ) बनाया है, काम ने उसी से अपना धनुष बनाया है, इन्द्र ने चढ़ने के लिए उसे अपना घोड़ा बनाया है, नारायण ने उसे अपनी सेज (शेषनाग )किया है और लक्ष्मी ने उसी कीर्ति को अपने नाक का मोती बनाया है, शंकर ने उसे अपना तिलक (चंद्रमा)