पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६३
पाँचवा प्रभाव


और पार्वती ने उसे ही अपना हार (मुक्ताहार) बना रखा है। (विवचन )कीर्ति या यश का रंग सफेद न माना जाता तो ऐसी मनोहर कविता न बन सकती। पहले कही हुई स्वेत वस्तुओं के अलावा चार स्वेत वस्तुओं के नाम इसंगवश और अधिक मालूम हो गये-५-गणपति दसन, (२) सागर (३) काम का धनुष (४) मोती। मूल -- देहदुति हलधर कीन्हीं, निशिकर कर, जगकर वाणी बर, बिमल बिचारु है। मुनिगण मन मानि, द्विजन जनेऊ जानि, संख संखपानि पानि सुखद अपारु है । के शोदास सो विलसि बिलसै बिलासिनीन, सुखमुख मृदुहास, उदय उदारु है। राजा दसरथ गुत सुनो राजा रामचन्द्र, रावरी सुषश सब जग को सिंगारू है ॥११॥ शब्दार्थ-जगकर = ब्रह्मा, विलास= आनन्दमय क्रीड़ा विला- सिनी = स्त्री । सुखसुखसहज,स्वाभाविक । उदय = बढ़ती। उहार-दानीजन। भावार्थ--पुनः उसी यश का वर्णन करते हैं कि बलदेव जी ने उसी यश को अपने तन की दुति बनालिया है, चन्द्रमा ने उसे किरण रूप से धारण किया है, ब्रह्मा जी ने बाणी और विमल विचार रूप से, मुनियों ने मन रूप से, ब्राह्मणों ने जनेऊ रूप से धारण किया है, और नारायण के हाथ में वही शंख हो