उसी से बनाया है। नारद के उपदेश और उनके उत्तम
बिचार उसी यश से बने हैं । शौनकादि ऋषियों की चोटियां
और गंगा की लहरें, और ( जीवों का) अदूषित बिहार
(पाप रहित जिलास ) ये सब उसी यश से बने हैं।
(विवेचन)-इसमें आठ नई सफेद वाओं के नाम शात हुए:-
१-चारायण का वक्षस्थल । १-लक्ष्मी की वाणी । ३-शोभा।
४-शुभता। ५-नारद का उपदेश और उनके विचार।
ऋषियों की चोटियां। -निष्पाप विहार, इत्यादि ।
(नोट)-जरावस्था का रंग सफेद मानकर अब केशव जी
उसका सुन्दर मनोरंजक वर्णन यो करते हैं:-
(जरावर्णन)
मुल-विलोकि सिरोरुह सेत समेत,
तनूरुह केशव यों गुण गायो।
उठे किधी आयु की औधि के अंकुर,
शूल कि सुःख समूल नसायो ।।
लिख्यौ किधौं रूप के पानी पराजय,
रूप को भूप, कुरूप लिखायो।
जरा सरपंजर जीव जन्यौ, कि
जुरा जर-कंबर सो पहिरायो ।। १३ ॥
शब्दार्थ-सिरोरुह- सिर के बाल । तनुरुह-शरीर पर के
रोएँ । आयु की औधि जीधन की अवधि अर्थात् मृत्यु ।
रूपे के पानी - चाँदी के पानी से । रूप को भूप यौवन ।
कुरूप जरावस्या की कुरूपता । जसो = जड़ दिया है।
जरा = ( ज्यरा) मृत्युकाल । जर-कंबर - जी का दुशाला।
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पाँचवा प्रभाव