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प्रिया-प्रकाश


भावार्थ-जावस्था में शरीर के रोधों सहित सिर के बालो को सफेद देखकर केशव ने इस प्रकार उसके गुणों का शान किया कि ये सिर के बाल और रोयें हैं, या अत्युकाल (रे श्रव अति निकट है ) को अंकुर हैं, या ये शारीरिक शूट हैं जिन्हों ने समूल सुल को नष्ट कर दिया है। या जरावस्था की कुरुपता ने यौवनावस्था ले चाँदी के पानी से पराजन पत्र लिखाया है। ये रोखें उसी के अक्षर हैं, या जरा ने जोर को शरपंजर से घेर दिया है, या अत्यु जी को जरदोजी का दुशाला ओढ़ाया है। --अभिराम,सचिकन स्वान,सुगंध केवाम हुने जे सुभायक के प्रतिकूल भोगशूल सबै, किधौं शाल सिंगार के घायक के । निज दूत अभूत जरः के किधौ अफताली जुरा जनु लायक के सितकेश हिये यहि बेश लसे जनु शायक अंतक नायक के॥ १४॥ शब्दार्थ-अभिराम = मनोरञ्जक । दुते । सुभायक के स्वाभाविक ही, सहज ही। शाल- सरहथ नामक हथियार जिससे मछली का शिकार किया जाता है। इसका रूप वरची के समान होता है, पर भाले तीन या चार होती हैं। मछली को इससे विद्ध करते हैं। सिंगार के घायक- नाशक कोई व्यक्ति निजबास । अभूत-अमुत। श्रफताली-वह अफसर जो किसी बड़े की यात्रा में पहले से आगे के मुकामोंमें जाकर उस राजा के ठहरने वा श्राराम का प्रबंध करता है। जुरा (ज्वरा) मृत्यु । लायक के - बड़ी योग्यता घाला, बड़ा काबल । अंतफनायक- यमराज । राजा