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प्रिया-प्रकाश


द्वारा काव्यमें अनेक सुन्दर उक्तियां कही जाती हैं। अब पीत वस्तुओं का ज्ञान कराते हैं। २-(पीत वर्णन) -हरिबान, विधि, हर नटा, हरा, हरद, हरताल । चंपक, दीपक, वीररस, सुरुगुरु, मधु, सुरपाल ॥ १६ ॥ शब्दार्थ-हरिवाहन = गरुड़ । हरा=पार्वती। हरद = हल्दी । सुरगुरु वृहस्पति । मधु= महुवापुष्प, वा बसंत ऋतु । मूल-सुरगिरि, भू गोरोचना, गंधक, गोधनमूत। चक्रवाक, मनशिल, सदा. द्वापर, वानरयूत ॥ १७ ॥ शब्दार्थ-सुरगिरिसुमेरु पर्वत । गोधनमूत-गोमूत्र । द्वापरप्रापरयुग । बानरपूत बानर का बच्चा। मूल-कमलकांश, केशवबसन, केशर,कनक, सभाग। सारोमुख, चपला, दिवस, पीतर, पीत, पराग ॥ १८ ॥ शब्दार्थ-कमलकोशः = कमल को वीज कोश, केशवबसन- पीताम्वर । सभाग-(संबोधन में है ) हे सभाग । सारोमुख -- मैना की मुखे । पराग-पुष्परज । मोद-ये ऊपर गिनाई हुई चीजें पीली मानी जाती हैं। चूंकि 'पार्वती का रंग पीला माना है, अतः नीचे लिखी कविता में इसी विचार ने कैसी सुन्दर बात पैदा कर दी है। मल-मंगल ही जु करीरजनी विधि, याही ते मंगली नाम धन्योहै दीपति दामिनि देह सवारि, उड़ाय दई धन जाय बचो है । . रोचन को रात्रि केतकि चंपक फूल में अंग सुवास भयो है। गौरी गोराई के मैलहि लैकरि हादकतें करहाद कन्यो है ॥१६॥