पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१३

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प्रथम संस्करण का निवेदन

उन्नीसवीं सदी के अन्तिम चरण में सरस्वती के जिन उपासकों ने 'भारतेन्दु' के साथ हिन्दी को प्राणदान दिया है उनमें 'प्रेमघन' जी का एक अमिट स्थान है। 'प्रेमघन' जी के अमूल्य ग्रन्थों के प्रकाशन का एक बड़ा भारी भार हम उनके वंशजों के ऊपर था। सौभाग्यवश आज प्रेमघन सर्वस्व प्रथम भाग को, जिसके अन्तर्गत प्रेमघन जी की सम्पूर्ण पद्य की रचनाएँ संग्रहीत हैं, हम लोग हिन्दी साहित्य के समक्ष उपस्थित कर रहे हैं। यह पूर्णाशा है कि बहुत ही शीघ्र उनकी गद्य, नाटक तथा आलोचना की पुस्तकें भी हम लोग हिन्दी संसार के समक्ष उपस्थित करेंगे।

प्रेमघन सर्वस्व प्रथम भाग को प्रबन्ध काव्य', 'स्फुट काव्य' तथा 'संगीत काव्य', इन तीन भागों में विषयानुसार विभक्त किया गया है। संगीत काव्य के अन्तर्गत प्रेमघन जी की 'संगीत सुधा' पुस्तक रचनाक्रम के अनुसार उसी अपने प्राचीन रूप में संग्रहीत है। इसमें पुस्तक के आरम्भ तथा अन्त को दो ही तिथियाँ दी गई हैं, क्योंकि भिन्न-भिन्न उपखण्डों की तिथियाँ ज्ञात नहीं हैं और न हो सकती हैं।

अन्त में हम लोग उन महानुभावों को, जिन लोगों ने इस पुस्तक के प्रकाश में आने में सहायता दी है, हृदय से धन्यवाद देते हैं। इस पुस्तक के प्रकाश में आने का श्रेय माननीय बाबू पुरुषोत्तमदास जी टण्डन को है। आपने दो शब्द लिखकर प्रेमघन परिवार के प्रति बड़ी ही कृपा की है। अन्त में आचार्य पण्डित रामचन्द्र जी शुक्ल के हम लोग कितने आभारी हैं, नहीं कह सकते-आचार्य शुक्ल जी का हम लोगों से प्रत्येक बार मिलने पर ग्रन्थ के प्रकाशन के विषय में कहना और अन्त में भूमिका लिखने का कष्ट करना उनकी कृपा ही है।

निवेदक
श्री प्रभाकरेश्वर प्रसाद उपाध्याय
श्री दिनेश नारायण उपाध्याय

शीतल सदन
मसकनवाँ, गोण्डा
आश्विन कृष्ण ३, १९९६