पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१५

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राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा स्वदेश प्रेम की भावना का रूप परिवर्तन क्रम उनकी कविता को भारतेन्दु युग के अमर इतिहास के रूप में प्रतिष्ठित करती है।

इसके साथ ही साथ देश के परम्परागत जीवन के प्रति अत्यन्त भावुक हृदय प्राप्त होने के कारण इन्होंने उन शाश्वत अनुरीतियों की भी अभिव्यंजना की है जिनमें जनता का हृदय बहुत समय से रमता चला आया है। इस प्रकार इनके शृंगारिक, भक्ति और धार्मिक रचनाओं में संस्कृत जीवन की झाँकी मिलती है। इस प्रकार प्रेमघन जी में सामयिकता और स्थायित्व दोनों वर्तमान हैं।

उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में नवीन चेतना का संघर्ष प्रारम्भ हो गया था। सदियों के सुप्त राष्ट्र में जाग्रति की प्रथम सिहरन लक्षित हो रही थी। प्रेमघन जी की भावना थी "बिगरो जन समुदाय बिना पथ दर्शक पण्डित" और कवि की क्षुब्ध आत्मा ने सदा शोक के साथ अपने मार्मिक उद्गारों को इस प्रकार व्यक्त. किया है :-“भारतीयता कछू न अब भारत में दरसात।"

भारतीय दुर्व्यवस्था से कवि क्षुभित था, उसे साहस का संबल दुष्प्राप्य था। देश-व्यापक दुर्दशा उसकी निराशा का वर्धन कर रही थी। अतीत के गौरवान्वित स्वप्न अब भारतीय भग्नावशेष-स्मृतियों के चित्रों में कवि के हृदय पटल पर अंकित थे। सुख और दुःख के बीच का जो वैषम्य, जैसा मार्मिक और हृदयस्पर्शी होता है वैसे ही उन्नति और अवनति, प्रताप और ह्रास के बीच का।

इस वैषम्य के प्रदर्शन में कवि ने एक ओर तो भारतीय पतनकाल के असामर्थ्य, दीनता, विवशता, उदासीनता के करुणोत्पादक चित्रों को अपनी कविताओं में रखकर अपनी काव्य भूमि को चिरंतनता प्रदान की है, पर साथ ही साथ ऐश्वर्य काल के प्रताप, तेज, पराक्रम के वृत्त स्थान-स्थान पर रखकर कवि ने अपनी इन्हीं आशाओं पर उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना का उच्च प्रासाद भी निर्मित किया है।

भारतीय परिस्थिति के गम्भीर चिन्तन के अतिरिक्त कवि को जब कल्पना जगत पर हम विचार करते पाते हैं तब हमें कवि की उन कविताओं का स्मरण होता है, जिनमें कवि ने मार्मिक भाव पक्ष तथा विभाव पक्ष संयुक्त प्रेम की कविताओं का चित्र चित्रित किया है। इसमें कवि परम्परागत भावनाओं द्वारा मानव जीवन को नित्य और सामान्य स्वरूप से मुक्त नायक नायिका भेद, प्रकृति के आलम्बन तथा उद्दीपन विभाओं के अन्तर्गत, प्रिय की मानसिक दशाओं के चित्रण द्वारा अपने काव्य में चिरन्तनता ला दी है। इससे हमें कवि की व्यापक मनोदृष्टि का परिचय मिल जाता है। इसी स्थान पर अब कवि के संक्षिप्त जीवन वृत्त पर विचार कर लेना भी समीचीन होगा।