सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
-१२५-

ब्रिटिश राज थाप्यो सुदृढ़ भारत खण्ड मझार।
न्याय प्रकास्यो रवि सदृश हरि दुख दुसह बिकार॥२५॥
तब पुनि भारथ वामसो भगवत करुणा ऐन।
पूरब सम पति तुहि दियो अवरहु सदा सचैन॥२६॥
तब सों यह छिति नारिबर धरी कछुक मनधीर।
उन्नति आसा आनि उर बिगत भई दुख पीर॥२७॥
पुनि तब निज सिंगार पै दियो कछुक मन बाम।
पै पिय परदेसहिं बसत यह इक मनहिं कलाम॥२८॥
पै दीनो सुख अमित पुनि नवल जबै या बाम।
भूषण बसन अनेक विधि सुन्दर रुचिर ललाम॥२९॥
तब पुनि करुणा भवन हरि ह्वै प्रसन्न बहु भांति।
दंपति सों पगि मोदसों अधिक बढ़ायो कांति॥३०॥
राजा को मिलि राज राजेश्वर को पद दीन।
प्रोषितपतिका नारि यह तुरत संयोगी कीन॥३॥
तब यह छित पर राज के रहत हुती आधीन।
पै अब लहि इक नृप अलग भई शोक सो हीन॥३२॥
तब यह राजा की हती पत्नी अदनी वेस।
पै अब ह्वै गो राज राजेश्वर नृप या देश॥३३॥
तासो अब औरहु बढ़ो या उर आनंद रासि।
पुनि अब करत सिंगार बहु गन दुख मन सन नासि॥३४॥
देखि हरख निज मातु को ता सुत भारथ लोग।
भरि उछाह आनंद समुद मगन भये तजि सोक॥३५॥
ह्वै ह्वै ह्वै आनंद मगन देत सबै आसीस।
जियै जियै विक्टोरिया सुख सों लाख बरीस॥३६॥

बधाई

जै जै भारथ महरानी। टेक।
जयति अपूरब ससि भारथ दुख तम खलु हरन निसानी।
बिकसावन भारथ सर आरज गन जन कुमुद सुजानी॥