पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१५८

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कटि पीत पटाकी छटा छहरें, दुपटा गर बीच विराजत हैं।
बनमाल रसाल हिये सिर मोर पखा अवली की भली सज हैं॥
मन माधुरी मूरति देखत बद्री नारायण जू बस में न रहैं।
बृजराज को आज या साज लखे, कुल लाज पै गाज परोई सहैं॥

मुख मंडल पै कुल कुन्तल की अलि रेशम के सम दूसत हैं।
कवि,चौर,सिवार, औ राहु तथा जम पास मिसाल मसूसत है॥
उपमा कहि बद्री नारायण जू, सुधासम्पति को जनु मूसत हैं।
यह शारद पूनम के निसि मैं मिल व्याल सबै ससि चूसत हैं॥

दुरे दृग चूंघट के पट ओट, सो चोट किये करै लाखन धूल।
लिये जुग भौहन की कवि बद्रीनारायण जू तलवार अतूल॥
भला मतवारे महाजुल्मीन नवीन उपद्रौ के नित मूल।
तऊ इन वीर बिसासिन, हाय दई दै दई वरुनी सत सूल॥

अनुराग पराग भरे मकरन्द लौं आज लहे छवि छाजत हैं।
पलक दल मै जनु पूतलि मत्त, मलिन्द परे सम साजत हैं॥
कवि बद्रीनारायण जू शुचि शील, सुगंध गहे अति भ्राजत हैं।
सरचारुता बारि मनोहर मै दृग कंजपे कैसे विराजत हैं॥

शंभु कहैं कवि दाडिम श्रीफल कंज कली पै अली छवि याहैं।
दुदंभि दोय धरी उलटी चकई चकवा की मिसाल दिया है॥
पै हम बद्रीनरायण जू यह भाखत साँच सही बतिया हैं।
काम के बान की ढाल बनी छतिया पै दोऊ कुच ये फुलिया हैं॥

यद्यपि छार कियोई हुतो छिनु मैं करि कोप जबै जिहि रुठे।
पै तिहि ज्याय खिस्याय भयो शरणागत ब्याहि बिबाह अनूठे॥