पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

धिक्कार धारा

सवहिं बस्तु सब रीति सँवार।
सिरजा जिसने यह संसार।
भाजन उसको बारम्बार।
जिसने है उसको धिक्कार।


है असार सचमुच संसार।
मानव जीवन है दिन चार।
जिसने किया न पर उपकार।
बार बार उसको धिक्कार।


बस्तु विदेशी की भर मार।
से भारत की दशा विचार।
सका स्वदेशी व्रत नहिं धार।
बार बार उसको धिक्कार।


किया आत्मतत्व न विचार।
जपा न अजपा जप निरधार।
सुरत सच्चिदानन्द सँभार।
बार बार उसको धिक्कार।

श्री बल्लभीय श्री गोपाल मन्दिर के गोस्वामी
श्री जीवन लाल जी के लाल के जन्म पर

१. मिरजापूर में यह मंदिर है।