पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१६६

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सोरठा

कीन्यो तोहि निहाल, हरषि लाल गोपाल प्रभु।
यह चिर जीवी लाल, निज सेवा फल रूप दै।

कवित्त


श्रीपति पूरन पाय कृपा, जस चन्द्रिका छाय के भारत भूपर।
मारग पुष्टि प्रकासि अधर्म, तमै हरि उन्नत होय निरन्तर।
भक्ति सुधा बरसै घनप्रेम, प्रफुल्लित हिन्द कुमोद कुलै कर।
बरिधि वल्लभ बंस उछाहि, उदै जो भयो यह वात कलाधर।

पं० चन्द्रभूषण जी चातुर्वेद के प्रशंसा में
सिरजि सकल जगवेद उपदेस्यो सुनि
जाहि मुनि आगम अनेक अधिकायो है।
साखन की साखा बढि ताकी कलि भानपन,
एक हू को पारग न लखि अनखायो है।
प्रेमघन प्रतिभा अलौकिक सकेलि सब,
सारे वित चित की कसक मिटायो है।
निज प्रति निधि रूप विविध विचारि विधि,
भूषण विबुध चन्द्र भूषण बनायो है।

पं० काशीनाथ ज्योतिषी के ऊपर लिखित
स्वस्ति श्रीयुत विज्ञवर, काशीनाथ सुजान।
श्री गुलाब सिंहात्मज, जीद निवास स्थान।
मिरजापुर गिरजानिकट, सुरसरि सरिता तीर।
अति सुरम्य अस्थल अमल, सब विधि नाशन पीर।
उक्त नगर मम मैं सोई, परम प्रशंसावान।
संयोगन शोभित भयो, नव योतिष विद्वान।
भयो समागम एक दिवस, मोहू सम सम्वाद।
अमल अलौकिक जन मिलन, सो पायो अहलाद।