पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१७५

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पै का ए सब झूठ बखान। नहि तौ विश्वम्भर भगवान॥
रह्यो कहाँ तुमम तबै लुकान। जब इन चढ़े यवन मुगलान॥
कियो जबै जै शाह इरान। आयो जबै राज यूनान॥
अलक्षेन्द्र सम्राट महान। जीत्यो पश्चिम हिन्दुस्तान॥
नौशेरवाँ सैन जब आन। वल्लभ पूर कियो वीरान॥
सूर्य वंश जो विदित महान। राम सुअन लौं वंश सुजान।
राज वंश भर एकहि आन। बाला बाल सबन के प्रान॥
लीन्यो जा दिन कोपि महान। हाय दुःख नहिं जाय बखान॥
जब रणधीर बीर बलवान। महाराज जयपाल सुजान॥
लरि निज बल भरि थाकि महान। कैद भयो नहिँ मूसलमान॥
छुटयो यदपि पै के हिय ग्लान। अति प्रतिकूल दैव अनुमान।
वीरोचित जीवन की आन। लख्यो न जब निर्वाह सुजान॥
साजि तुषानल चिता ललाम। भस्म भयो करि तुमहिं प्रणाम॥
लखे न तुम का तब तेहि ठाम। भये न तब का तृप्यन्ताम॥
जबै अनन्दपाल बलवान। चढ़यो पिशावर के मैदान।
लै सँग नृपति अनेक महान। सजे सैन चतुरंग सुजान॥
जैसहि भिरे दोउ दल आन। भाज्यो चिघरि मतङ्ग महान॥
हटे अनन्दपाल सब जान। रन तजि के भट लगे परान॥
तब तुम कहा कीन यह जान। अथवा रह्यो नाहिं उर ज्ञान॥
वा ऐसहीं न्याय को बान। कहवायो अब लौं भगवान॥
तिमिर लङ्ग जब पहुँच्यो आन। सांचहुँ किए प्रलय सामान॥
लूटि पूँकि अरु ढाहि मकान। नगर अनेक कीन वीरान॥
मारत काटत बचे बचान। मारग मिले मनुष्य अथान॥
एक लाख जन के अनुमान। दिल्ली पहुँचि सबन को प्रान॥
मारि काटि कीने खरिहान। नगर मध्य फिर कीन पयान॥
प्रथम लगायो आग महान। दावानल की ज्वाल समान॥
जलन लगी दिल्ली जेहि आन। मृग लौँ मानुष लगे परान॥
धाय धाय धरि धार कृपान। काटि काटि कीने खरिहान॥