पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२१९

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१८७ रोओ सब- रोओ सब- । हय हय- रहे विलायत जो हरखाय । भारत सौं धन रोज कमाय॥ चैन करै. जो मजे उड़ाय । तिसका टिक्कस भी छुट जाय ॥ यह अचरज देखो तो आय । सोचत बुद्धि बिकल हो जाय ॥ । हय हय. माल गुजारी दीन्ह बढ़ाय । तापर एकर और लगाय॥ रात दिना जब खूब कमाय । मेहनत से जब देंह थकाय ॥ तबै खेत में अन्न देखाय । पाला पाथर नासै आय।। रोओ सब-- । हय हय--- इन बिपतन सों जो बचि जाय । तो कुरकी बैठावै आय॥ करजा लेकर देंय चुकाय । बेचन जाय नगर जब धाय । तब वापर चुंगी लग जाय । देयँ बिसार टिकस धरि घाय॥ तब वापर चुंगी लग जाय । देय बिसार टिकस धरि खाय । रोओ सब मुँह । हय हय- रिपन गये जब सों उत हाय । तब सों बिपत परी उतराय॥ डफ्रिन लाट भये इत आय । प्रथम परे अति सरल सुनाय॥ पर इत आय किये मन भाय । करनी कछू कही नहिं जाय॥ रोओ सब-- । हय हय- रावल पिण्डी खूब सजाय । भल दरबार कीन्ह हरखाय॥ दिल्ली कृतृम युद्ध करवाय । जग से सूरन सुभट बुलाय॥ न्यौता भलविधि तिन्हें जिवाँय । भरल खजाना दिहिन लुटाय॥ रोओ सब मुंह- । हय हय- अंगरेजन के हित चित चाय । ब्रह्मा में बाजे अरराय॥ बेचारे थीबा धरि धाय । कैद किये भारत में ल्याय ॥ करें हाकिमी गोरा जाय । खर्चा भारत सीस बिसाय ॥ रोओ सब मुँह- । हय हय- सुनियत रूस पहूँच्यो आय । ताहू पर नहिं नेक डराय॥ भारत की सी भूमी पाय । दिहिन टिकस एक और बढ़ाय॥ II