पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लूट रहे हो यही अनोखापन यांका तो देख देख पतछाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। हार गया जब तुमसे तब फिर क्या वीरता दिखाऊँ। डाँट के जो कुछ कहिए सुनकर गरदन क्यों न हिलाऊँ। बुरा चहे कितनहूँ लगे सुन शरबत सा पी जाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। तिरछी तिउरी देख तुम्हारी क्योंकर सीर नवाऊँ। हो तुम बड़े खबीस जानकर अनजाना बन जाऊँ। हर्फे शिकायत ज़बां पर आए कहीं न यह उर लाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। भली तरह मैं जानूँ बले छुपाऊँ। करते हो अपने मन की मैं लाख चहे चिल्लाऊँ॥ डाह रहे हो खूब परा परबस मैं गो घबराऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। रोज तुमारे देने को मैं कहाँ से रुपया लाऊँ। बिना लिए तुम पिण्ड न छोड़ो रि क्या जुगत लगाऊँ॥ यह दुखड़ा तजि ईस और सों कहकर क्या फल पाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। बहुत तंग तुमने कर डाला कब तक रंज उठाऊँ। सहने का भी कोई दरजा इससे अधिक न पाऊँ। ठान लिया है हमने भी कुछ क्यों उसको समझाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। धोखा दिया अजब तुमने वल्लाह खूब सरमाऊँ। होकर मैं बदनाम गैर संग देख तुमैं दुख पाऊँ। लोग पूछते हैं बाइस बस सुनकर चुप हो जाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। मरजे मुबारक का मरीज तब क्या अहवाल सुनाऊँ। अजी डाक्टर साहब शक्ल तुम्हारी देख डराऊँ॥