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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२३४

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२०३ घनप्रेम पिया नहिं आये चलौ, भजि भीतर काली घटा घहरें। लखि मैन बहादुर बादर के, कर सों चपला असि छूटी परें। की। धुन धुरवान घोर th सावन समान करि आयो री महान, मैन मीत बलवान साजे सैन बगुलान की। धनु इन्द्रधनु बान बंद बरसान बन्दी, विरद समान कल कूक मुरवान की॥ प्रेमघन प्रान पिय बिन अकुलान लाग्यो, लखत कृपान सी चलान चपलान धीरज परान हहरान हिय लाग्यो सुन, घुमड़ी घटान की॥ चंचला चौंकि चकी चमकै, नभ बारि भरे बदरा लगे धावन । कुंजन चातक मंजु मयूर, अलाप लगे ललचाय मचावन ॥ छाय रह्यो घनप्रेम सबै हिय, मानिनी लाग्यो मनीज मनावन। साजन लागी सिंगार सजोगिन, आवत ही मन भावन सावन ॥ नभ घूमि रही घन घोर घटा, चमू चातक मोर चुपाते नहीं। सनकै पुरवाई सुगन्ध सनी, छिन दामिनि दौर थिरातै नहीं। घन प्रेम जगावन सावन है, पर हाय हमैं तो सुहाते नहीं। मुखचन्द अमन्द तिहारो जवै, इन नैन चकोर दिखाते नहीं। कूकै कोकिलान हिय हूक देत आन, बिरहीन अबलान सोर सुनि मुरवान की। दादुर दलन की रटान चातकन की, चिलात छन छन चमकान चपलान की। पैठी मान तान भौन भौंहन कमान, भूलि प्रेमघन बान बीर पीतम कैसे के बचैहै प्रान बीर बरखान लखि, घुमड़ि घुमड़ि घन घेरन घटान की। सुजान की।