पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२४७

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- २१६ - टूकै के करेजे हिय हूक दै अचूक हाय, लागी काली कोकिलैं कहूंक बैठि डार डार॥ बसन्त बसेरो कियो, बगियान बसिये तिहि त्यागि तपाइये ना। दिन काम कुतुहल के जे बने, तिन बीच वियोग बुलाये ना॥ घन प्रेम बढ़ाय के प्रेम अहो, बिथा बारि वृथा बरसाइये ना। चितै चैत की चाँदनी चाह भरी, चरचा चलिबे की चलाइये ना॥ फाग मनकन लागी मंजु मंजरी रसालन पैं, काली काक पाली त्यों मृदंग लाग्यो ठनकन। गनकन लागी राग अनुराग, सरसान बगियान चुरियान लागी खनकन॥ अनकन लागी प्रेमघन प्रेम बस ज्यों गुलबान 4 आय भौर भीरै लागी भनकन। सनकन लाग्यौ मन बनिता बियोगिन को, सौरभन सानी ज्यों समीर लाग्यौ सनकन॥ जाके बल सकल कैंपायो जगजन सोई, पाय के वियोग व्यथा सिसिर समन्त की। हाहाकार सोर चहुँ ओर सों करत घोर, लीने धूरि आवत उड़ावत दिगन्त की ॥ प्रेमघन अवलोकिये तो बन बागन, उजारै तरु पुँज छीनि छबि छबिवन्त की। तोरत परन झकझोरत लतान आज, डोल बावरी सी बनी बैहर बसन्त की।