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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२४८

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२१७ बने बेलन के बंगले बगियान, प्रसूनन की झरि लावती हैं। बिछि फूलन सेज 4 चान्दनी चंद की, चौगुनो चित्त चुरावती हैं। घन प्रेम सुगन्धित सीतल मन्द, समीर सुखें सरसावती हैं। हमें सौ गुनी सारद सों सजनी, रजनी ये बसन्त की भावती हैं। बन बागन फूले प्रसून सुगन्धित, सीतल वायु बहावती हैं। मद माते मलिन्दन की भनकै, भल कोकिल कूक सुनावती हैं। घनप्रेम पसारन काम कुतूहल, चाँदनी चित्त चुरावती हैं। सुख साँचो सँजौग सँजोइबे को, रतियाँ ये बसन्त की आवती हैं। सै, रसाल की मंजुल मंजरी पै, किलकारत कोकिल औ कल कीर। पसारत सों घनप्रेम शुभ सीतल मन्द सुगन्ध समीर ॥ बस्यो, बन बागन बीच बसन्त, रही छबि छाय बिलोकियो बीर। बिकास प्रसूनन पुंज तें कुंज, गलीन गलीन अलीन की भीर।। चुम्बन कै कलिका मुख गुंजत, मंजु मलिन्दन की समुदाई।