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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२६३

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२३३ - देव दिवाकर दास पर, द्रवहु दया करि नाथ । रोग सोग दुख दोष मम, दूरि करौ इक साथ ॥२२।। तुम तजि जाचौं और किहि, अहो भानु भगवान। अब तुमरे या दास को, नाहिं सरन कहुँ आन ॥२३॥ हरहु दीनता दास की, दीन बन्धु दिन नाथ। करहु कृपा बिनवहुँ सरन, आप नवावहुँ माथ ॥२४॥ बन्यों रोग आरत सरन, आयो तुव दिन नाथ। अब तो याकी लाज प्रभु, अहै आप के हाथ ॥२५॥ तुमहिं दिवाकर देव, रोग सोग दुख दल दरन। मम चिन्ता हरि लेव, त्राहि त्राहि असरन सरन ॥२६॥