पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२७५

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२४५ यह विचारि के बासी। - तब हमरी सब दुःख कथा को कथन वहाँ पर। रह्यो वहीं के सभ्यन के आधीन सरासर। कह्यो कबहुँ जो दया कियो कोउ धर्म परायन। बिना यथारथ ज्ञान सोऊ नीके कहि जायन । तासों कोऊ भारतवासी के बिना वहाँ पर। भारत के दुख मिटिबे की आशा अति दुस्तर ।। कई सुजन भारत दुखी देखि निज देश दशा विद्या गुन रासी। गए धाय इङ्गलैण्ड यही आशा उर धरि के पहुँचें राजसभा मैं युक्ति नई कछु करिकै॥ निज विद्या बुधि बचन चातुरी को दिखायक। बृटिश प्रजा के हमहुँ बनै प्रतिनिधी जायकै 11 नहि उपाय इहि के सिवाय कछु और अहै अंब । राज सभा में पहुँचि दुःख निज गाय कहें तब ।। दयावान धारमिक सभासद जे उदार चित। हिन्द हितैषी अँगरेजन सो हिल मिलि के नित। दै सहायता उन्हें ग्रहन के उनकी सिच्छा। करें यही मिसि यत्न और प्रारब्ध परिच्छा। यदपि रह्यो यह परम असम्भव कठिन मनोरथ । उठ्यो कोऊ नहिं कण्टकमय गुनि विकट जासु पथ ॥ तदपि चले ये बार बार कसिकै निज परिकर। हारि हारि थकि बैठे आकर लौटि लौटि घर॥ दादाभाई नौरोजी महा बीर हार्यो थक्यो न करत रह्यो उद्योग निरन्तर॥ पै बर।