पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४६ बिजय रूप उद्योग सुफल पायो सो अब के। जासों रही नहीं सुख की सीमा हम सब के॥ धन्य देश है ग्रेट बृटिन इङ्गलैण्ड खण्ड धनि। जहाँ स्वच्छ स्वच्छन्दता रहति है चेरी बनि॥ राजति त्यों स्वाधीनता सरस सीमा के अन्तर। राजा प्रजा दुहूँ के सुखहिं सवारि परस्पर । धन्य धन्य तहँ सेन्ट्रल फिन्सबरी मण्डल अति। धनि धनि लिबरल असोसिएशन जो उत राजति॥ यदपि धन्य है सब लिबरल अंगरेज़न को दल। जाके कारन है बृटेनियाँ को यश उज्वल॥ तऊ धन्य है धन्य सभासद ए लिबरल बर। प्रगट दिखायो जिन उदारता यह साँची कर॥ अचरज मान्यो अनहोनी गुनि सबै जाहि सुनि। चहुँ ओरन सों धन्य धन्य की पूरि रही धुनि ॥ भारत मैं तो मानो घर घर आनन्द छायो। लखियत है हर एक नरन को हिय हरखायो। द्वै कृतज्ञ सब कहत प्रेम सों अतिशय विह्वल। अहो धन्य! तुम फ़िन्सबरी के साँचे लिबरल ॥ धन्य तुमारी यह उदारता औ धनि साहस । सत्य प्रतिज्ञा पालनता तुमरी धनि धनि बस ।। धन्य धन्य तुमरी दृढ़ता औ गुन ग्राहकता। पक्षपात सो रहि धन्य पर उपकारकता।। नहिँ यासों तुम निज उदारता ही दिखरायो। इङ्गलिश जाति भरे को गौरव जगत जनायो।