पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२७७

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- २४७ महरानी की करी प्रतिज्ञा तुम सच कीन्यो। भारत की साँची हितैषिता को यश लीन्यो। परम उच्चपद-अधिकारी अँगरेज़ अनेकन। महा मधुर कहि वचन हमारे मोहि लिये मन॥ दिये अनेकन आशा जाहि रहे हम ताकत। निराश थकि गये मौन गहि मन मैं माखत ॥ पै जो उन सब कह्यो ताहि तुम करि दिखरायो। जासों हम सब के मन में विश्वास अस आयो॥ सब बिधि उन्नति करिहै इङ्गलिश जाति हमारी। जामें दृढ़ प्रमाण है पहिली कृत्य तुम्हारी॥ कारन सो गोरन की घिन को नाहिँ न कारन । कारन तुमही या कलंक के करन निवारन॥ कारनहीं के कारन गोरन लहत बड़ाई। कारनहीं के कारन गोरन की प्रभुताई। कारंनहीं है कारन को गोरन गोरन मैं। कारन पै जिय देन चहत गोरन हित मन में॥ कारन की है गोरन मैं भगती साँचे चित। कारन की गोरन ही सों आशा हित को नित॥ कारन को गोरन की राजसभा मैं आवन । को कारन केवल कहिकै निज दुख प्रगटावन ॥ कारन करन नहीं शासन गोरन पै मन मैं। कारन के तौ का कारन घिन जो कारन मैं॥ गोरन को जो कहत नकारन कारन रोकौ। नहिं बैठे ए गोरन मध्य कहूँ अवलोकौं॥ १८