पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२७८

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महा मन्त्रि को कथन मेटि तुमहीं बिन कारन। गोरन राजसभा में कारन के बैठारन॥ के कारन तुम अहौ, अहौ प्रिय साँचे लिबरल। कारन के अब तो तुमहीं कारन कारन बल॥ सारदूल दल मैं तुमहीं यह थाप्यो हाथी। त्यों तुमहीं सरबस वाके रच्छा के साथी॥ कियो काम तुम तौन जौन कोउ न कहुँ सोच्यो। साँचहुँ कारन के जिय की तुम कसकहि मोच्यो। पाव अरब जन मैं तें चुन्यों एक तुम ऐसो। जैसो ढूंढि न लहै कोऊ काहू बिधि वैसो।। दियो मान तुम वाहि अधिक निज प्रतिनिधि करिकै। कन्सर्वेटिव के दल को कोलाहल हरिक। नौरोजी को आप पार्लीमेण्ट सभ्य करि। साँचहुँ लियो सबै भारतवासिन को मन हरि॥ भारत को धन राज लियो औरै अँगरेजन। पै निश्चय हम सब को लीन्यो तुमहिं आज मन॥ गुनि अपार उपकार आप को हुलसत हिय अति। धन्यवाद किमि देहिँ तुमैं ? न विचारि सकत मति ॥ धन्य ! धन्य ! प्रति रोम कहत आपुहिँ सों बरबस। भारतवासी कबहुँ नहीं यह भूलि सकत जस ॥ नवल कृपा तुमरी भावी मङ्गल की आशा। उपजावति बहुभाँति हिए दै दृढ़ विश्वासा॥ सो निज करतब लाज राखियो सदा विचारत। भारत के दुख हरहु वेगि जो है अति आरत॥